27-Apr-2024 PM 01:47:02 by Rajyogi Ji
इस संसार में ऐसा कोई नहीं है! जो नारायण से परे चला जाए और जो चला गया वह अस्तित्व विहीन है ( निराकार स्वरूप है ), क्योंकि जो सृष्टि की सीमा के बाहर-भीतर एवम मध्य में है, वह नारायण ही है, और जो उस सीमा से परे है, वह सभी स्वरूपो एवम कल्पनाओ से परे शुद्ध चेतन स्वरूप परब्रह्म है। एक योगी के द्वारा नारायण के साथ भौतिक विहीन परसत्ता का आभास किया जा सकता है, किन्तु नारायण से परे उस शुद्ध चेतन स्वरूप में तो कोई आभास ही नहीं है, इसलिए वह दृश्य और द्रष्टा की सीमा से परे निराकार हैं। यूं तो जड़-चेतन, सूक्ष्म-सथुल सब नारायण ही हैं, किन्तु कल्पनाओ से परे आभास विहीन अपने उस परम-चेतन स्वरूप का वर्णन अथवा आभास तो नारायण भी नहीं कर सकते हैं, फिर साधक स्थिति वाले साधक की तो बात ही क्या है।
-राजयोगी जी