27-Apr-2024 PM 01:46:21 by Rajyogi Ji
यह ईश्वर सर्वशक्तिमान है! इसे किसी और ने बंधन में अथवा नियम एवम नियति में नहीं बांध रखा है, इसने स्वयम ही अपने लिए नियम एवम नियति आदि का निर्माण किया है और उसे धारण कर रखा है। अगर यह ईश्वर एक ही इच्छा में संतुष्ट रहता तो स्वयम के होने में ही संतुष्ट रह सकता था, किन्तु जब इसने दो की इच्छा की, तब इसे उन दो के भाव एवम विकार ने बांधा और उन भाव एवम विकार के साथ जुड़े हुए क्रिया-कलाप ने वांधा- इस प्रकार यह ईश्वर उन अनंत इच्छाओ रूपी कारण एवम कार्य में उलझा हुआ चराचर जगत के रूप में व्याप्त हो गया। आप उस ईश्वर से भिन्न नहीं हैं! जो भाव उस ईश्वर में प्रगट हुए थे, वहीं भाव प्रत्येक मनुष्य को बांधे रखते हैं और यह मनुष्य इच्छाओ के जंजाल से आगे की सृष्टि का निर्माण करता रहता है। शरीर के सो जाने पर आप नित्य और निरंतर मन रूपी ईश्वर के द्वारा घटित उस प्रक्रिया को प्रत्यक्ष देख सकते हैं, जिसमें बिना शरीर और मटीरियल के मन इच्छाओ को भोगने के लिए स्वयम ही चराचर जगत के साथ अनेक रूपो को धारण कर लेता है। महागुरूओ द्वारा रचित यह ध्यान की पद्धति वह छुरी ही, जो इन इच्छाओ के जंजाल को तोड़कर उलझी हुई इस प्रक्रिया को रिवर्स कर आपको परम चेतन स्वरूप में प्रतिष्ठित कर देती है।