27-Apr-2024 PM 02:05:14 by Rajyogi Ji
विराट रूप में स्थित साधक को जब कुछ पूर्व जन्म की समृतियां स्मरण हो आती हैं, तो वह क्षण पहले दुखदाई और बाद में वैराग्यकारी होता है!
दुखदाई इसलिए होता है कि पूर्व की कुछ सुखदायक एवम दुखदायक स्मृतियां साधक को विचलित करती हैं, जिसमें साधक पूर्व में बीते हुए दृश्यों को प्रत्यक्ष देखता है जैसे वह उसी समय घटित हो रही हों- जैसे किसी ने आपको एक बहुत बड़े ग्राउंड में बंद कर दिया हो और आपके चारों ओर हजारो लाखों छोटे -बड़े घूमते हुए टीवी लगा दिए हों, जिनमें आपके पिता, पुत्र, पती, मित्र, गुरू, शिष्य आदि अनेकों किरदार अनेक स्वरूपो में दिखाए जा रहे हों- तो ऐसे में उन सुख-दुख रूपी दृश्यों को देखकर साधक का विचलित होना स्वाभाविक है।
वैराग्यदाई इसलिए होता हैं कि साधक इन सब दृश्यो को देखकर धीरे धीरे बोध को प्राप्त कर लेता है, कि बहुत जन्मो में बहुत सारे दृश्य घटित हुए किंतु वह स्थिर नहीं रहे। जैसे रात्रि में दिखने वाले स्वप्न का सुबह कोई अस्तित्व नहीं रहता है, साधक को बोध हो जाता है कि यह स्वप्न रूपी रात्रि में दृश्य घटित होते हैं और दिन में लय हो जाते हैं- जैसे विराट रूपी ईश्वर ने स्वयम ही दृश्य एवम द्रष्टा का रूप धारण कर संपूर्ण सृष्टि का निर्माण कर दिया हो।
-राजयोगी जी