27-Apr-2024 PM 01:40:47 by Rajyogi Ji
आप साधक तो इस क्षण को भी नहीं जी पा रहे हो! जो अभी वर्तमान में चल रहा है, जिसमें अभी आप इस समय में present हो, जीने वाले तो किसी भी भाव एवम धारणा को धारण कर समय प्रवेश कर लेते हैं और उस बीते हुए भाव को भी जी लेते हैं। आपके भाव बिखरे हुए हैं, आपकी धारणा बिखरी हुई है, आप एक में एकाग्र नहीं है, इसलिए आप किसी भी स्वरूप को जी नहीं पाते हैं। मैने तो बीते हुए और आने वाले समय को भी जिया है, जो कि समय के गर्भ के बाहर एवम भीतर स्थित हैं। मैने श्रीकृष्ण, बुद्ध आदि अनेक बीत चुके धारणा के भाव को जिया है, जिसमें परम-शांति एवम आनंद है। और मैंने शिव तथा परब्रह्म के भाव को भी जिया है, जिसमें मैं प्राकृति से अभिन्न तथा प्राकृति से परे होता हूँ। फिर पता नहीं आप साधक ध्यान को क्यों नहीं जी पा रहे हो, जबकि ध्यान को धारण कर समाधि में प्रवेश करना सहज है। यह जो आपने संसार के बिखरे हुए भाव धारण कर रखे हैं, इन्होने ही आपको ध्यान को धारण कर अपने सत चित आनंद स्वरूप समाधि को धारण करने से रोक रखा है। कभी इन संसारिक भावो से बने स्वरूपो का त्याग कर "अहं ब्रह्मास्मि" के भाव को धारण कर तो देखिए, आप निश्चित ही परम शांत एवम आनंद रूप परब्रह्म हो जाओगे। आनंद को धारण करोगे तो कृष्ण हो जाओगे, शांति को धारण करोगे तो बुद्ध हो जाओगे, प्राकृति से ऐकता का भाव धारण करोगे तो शिव हो जाओगे और सभी भाव तथा धारणाओ को त्याग दोगे तो परब्रह्म परमात्मा हो जाओगे।
-राजयोगी जी