कुछ तो ऐसा है जो मैं लिखकर समझाने में असमर्थ हूँ

27-Apr-2024 PM 02:24:07 by Rajyogi Ji

कुछ तो ऐसा है जो मैं आपको लिखकर समझाने में असमर्थ हूँ! क्योंकि मैं कर्म के भाव तथा प्रारब्ध के बंधन में हूँ, फिर वह कर्म का भाव अथवा प्रारब्ध आपका हो या मेरा। मैं कृष्ण रूप में सर्वसमर्थ होते हुए भी बंधन में ही था, नहीं तो मैं कैसे समर्थ होते भी अपने कुल और प्राणो से अधिक प्रिय द्वारका नगरी का विनाश होने देता। सत्य तो यहीं है कि मैं अपने प्रत्येक स्वरूप में बंधन से बंधा हुआ हूँ, इसलिए मैं ज्ञानवान तथा सामर्थ्यवान होते हुए भी नियति के विरुद्ध नहीं जा सकता हूँ।

               -राजयोगी जी