27-Apr-2024 PM 02:03:11 by Rajyogi Ji
यह आधुनिक science भी कितनी मूर्ख है! जो भौतिक वस्तुओ से उस परम-चेतन की खोज कर रही है जिसने इच्छा मात्र से कोटि-कोट ब्रह्मांडो की रचना कर दी, जो अव्यक्त होते हुए भी अणु से लेकर अणु की मूल संरचना में तरंगो के रूप में व्यक्त है- जिसने अजन्मा होते हुए भी अपनी इच्छा-मात्र से अनंत स्वरूप धारण कर पूरा रंगमंच तैयार कर दिया। यह science जो इस ब्रह्मांड के विषय में 0.00000000000001% भी नहीं जानती है, वह कोटि-कोट ब्रह्मांड के रचयिता को अज्ञानता से बने भौतिक पदार्थो को माध्यम बनाकर खोजना चाहती है- यह मूर्खता नहीं तो और क्या है। यह सृष्टि जितनी बाहर की ओर पूरे ब्रह्मांड में व्यक्त है उतनी ही एक कण में भी व्यक्त है और यह ब्रह्मांड स्वयम भी उस सृष्टि का एक कण ही है, इस प्रकार यह सृष्टि एक से दूसरे में गुथी हुई है। जिस प्रकार कल्पना एवम विचारों की गणना असंभव है वैसे ही सृष्टि का छोर पकड़ना भी असंभव है, क्योंकि एक से दस लाख विचार जन्म लेते हैं और उन दस लाख विचारो से और दस-दस लाख विचार जन्म लेते रहते है, इस प्रकार यह क्रम अनंत समय से चलता आ रहा है और आगे भी ऐसे ही चलता रहेगा। यद्यपि प्रत्येक एक विचार दूसरे विचार से कड़ी की तरह जुड़ा हुआ है, आपने एक कड़ी का रहस्य सुलझा लिया तो पूरी शृंखला का रहस्य खुल जाएगा।
-राजयोगी जी