27-Apr-2024 PM 02:13:18 by Rajyogi Ji
आत्मज्ञान का सूक्ष्म स्वरूप ही अंतर्ज्ञान है, जो कि साधक की परिपक्व अवस्था में घटित होने वाली एक प्रक्रिया है। शुरुआती अवस्था में अंतर्ज्ञान तब घटित होता है जब साधक अपने को शरीर से मुक्त महसूस करता है, एक ऐसी अवस्था जिसमें पूरा शरीर जकड़ जाता है और पर्वत के समान भारी हो जाता है। शरीर जकड़ने की इस प्रक्रिया में साधक की स्वास और ह्रदय आदि यंत्र भी काम करना बंद कर देते हैं, इस अवस्था में साधक के प्राण कपाल के ऊपरी हिस्से में होते हैं जहाँ साधक को अलौकिक आनंद और परम-शांति का अनुभव होता है- अथवा कहें कि जीव अपने को पूर्ण ब्रह्म के रूप में अनुभव करता है।
-राजयोगी जी