हे मित्र मन!

27-Apr-2024 PM 02:33:30 by Rajyogi Ji

हे मित्र मन! कोई तो ऐसा सांचा बनाओ जिसमें मैं संपूर्ण ब्रह्मांड की माटी को एकत्रित कर आकार शून्य कर दूँ, जिसमें मैं अपनी सभी इच्छाओ को पिघलाकर मुक्त हो जाऊ। यह मेरा घट रूपी सांचा ऐसा करने में समर्थ था, किन्तु तेरा असहयोग होने के कारण यह असमर्थ हो गया है। तेरा सहयोग मिले और तू बाहर से भीतरवासी हो जाए, तो तेरे साथ मैं भी मुक्त हो जाऊँ और तू भी सुलझ जाए- क्योंकि तू ही वह धागा है! जिसके बाहर की तरफ उलझनें के कारण मैं भी उलझ गया हूँ, तेरे सुलझने से मैं स्वतः ही मुक्त हो जाऊँगा।

              -राजयोगी जी