27-Apr-2024 PM 02:17:27 by Rajyogi Ji
काश कि यह मनुष्य! तन पर गहनो की जगह फूल धारण कर लेता तो शायद इसके शरीर से खुशबु आने लगती, काश कि यह मनुष्य छल-कपट को छोड़कर सत्य को धारण कर लेता तो शायद इसके चरित्र से खुशबु आने लगी। काश कि यह मनुष्य समय रहते चेत जाता तो इसे जीवन के अंत में पछताना ना पड़ता, काश कि यह मनुष्य समय रहते मन को बाहर से समेटकर भीतर प्रवेश कर जाता तो अपने शुद्ध चेतन स्वरूप को प्राप्त हो जाता।
किन्तु यह मनुष्य बावरा है! जो शरीर पर बनावटी गहने पहनकर अपने परिजनो को ठगने का व्यर्थ प्रयास करता है, यह मनुष्य कपटी है, जो मन में छल-कपट धारण कर संसार ठगने का व्यर्थ प्रयास करता है और स्वयं ही ठगा जाता है। यह मनुष्य बड़ा भाग्यहीन है, जिसने मनुष्य जन्म के रूप में मिला हुआ सुअवसर व्यर्थ के तामझाम में लगाकर खो दिया, और अब यह स्वयं से घड़ित पत्थर के भगवान से मुक्ति की उम्मीद लगाए बैठा है, जिसमे प्राण प्रतिष्ठा इसने स्वयम की है।
अरे मूर्ख मनुष्य! जिसका निर्माण पांचभौतिक पत्थर से हुआ है, जो स्वयम पांचतत्वो से मुक्त नहीं है वह तुम्हे मुक्त कैसे कर सकता है- किन्तु अगर तेरे भीतर उस सत्य सनातन ईश्वर का प्रादुर्भाव हुआ होता, तो बात अलग थी।
-राजयोगी जी