30-Mar-2024 PM 12:32:47 by Rajyogi
इस संपूर्ण सृष्टि में इच्छा रहित कुछ भी नहीं है! निराकार बने उस परम-चेतन परमात्मा में भी इच्छा ही थी, जो उसने! अपने एक अंश में साकार सृष्टि की रचना की, ताकि वह दो होकर अपने निराकार स्वरूप को प्रतिपादित कर सके। अमूर्त पड़े जीव में भी इच्छा ही है, जो एक से दूसरे जन्म में प्रवेश करता है और अनेक इच्छाओ में परिवर्तित हो जाता है। इस संसार में जो शरीर भोग लिए गए हैं वह भी इच्छाए ही थी और जो भोगे जा रहे हैं वह भी इच्छाए ही हैं, जो आगे भोगे जाने के लिए जन्म लेने वाली हैं वह भी इच्छाए ही हैं। मैं भी किसी की इच्छा का अंश हूँ और मेरे जैसी अनेक इच्छाए इस सृष्टि में दृश्य-अदृश्य रूप में विद्यमान हैं, जो इन इच्छाओ को समेटकर सृष्टि का विस्तार रोकने के प्रकरण में बंधी हुई हैं।
-राजयोगी जी