27-Apr-2024 PM 02:29:23 by Rajyogi Ji
यह मनुष्य कितना भाग्यहीन है! इसको मनुष्य शरीर मिला जिसको माध्यम बनाकर यह परमतत्व को प्राप्त हो सकता था, किंतु इसने तो विकारों में उलझकर अपना जीवन ही व्यर्थ कर लिया। अगर यह इस शरीर को नश्वर समझकर अपने उत्थान के लिए कुछ प्रयास करता, तो यह निश्चित ही बोध को प्राप्त होकर अमर हो जाता। किंतु अब क्या लाभ! इसने पूरा जीवन पशु बनकर इन पांचत्तवो के लालन-पालन में ही लगा दिया, और इसने अपनी आगे की यात्रा भी तय कर ली है- अब पशु रूप में जन्म भी इसे ही लेना पड़ेगा, क्योंकि इस शरीर में अबोध रहकर पशुत्व तो इसने पहले ही धारण कर लिया है।
-राजयोगी जी