27-Apr-2024 PM 02:22:09 by Rajyogi Ji
जितना अंतर बीज, पेड़ और फल में है उतना ही अंतर चेतना, आत्मा और मन में है! यद्यपि यह मूल से एक ही हैं, किंतु इनके स्वभाव और फल में बड़ा अंतर है। जैसे बीज में पेड़ और पेड़ में अनगिनत फल छिपे रहते हैं, ठीक वैसे ही चेतना में आत्मा और आत्मा में अनगिनत संकल्प मन रूप में छिपे रहते हैं- यद्यपि इनमें थोड़ा सा अंतर है जैसे कि:- बीज से पेड़ और पेड़ से अनगिनत फल और फल से अनगिनत बीज निकलते हैं, किंतु यहाँ चेतना से अनगिनत आत्मा और आत्मा से अनगिनत मन निकलते हैं- किंतु मन से चेतना नहीं निकल सकती, मन को संकल्प रहित आत्मा और आत्मा को मन रहित चेतना होना आवश्यक है। यहीं निर्विकल्प समाधि है जिसे प्राप्त होने पर जीव परम शांति को प्राप्त कर मुक्त हो जाता है।
-राजयोगी जी