27-Apr-2024 PM 02:06:49 by Rajyogi Ji
मैं बुद्धि में वास करके चराचर जगत का विस्तार करने वाला ब्रह्म हूँ, मैं ही हूँ! जिसने मन रूपी माया के द्वारा अपनी चेतना को ढक रखा है, मैंने ही एक से अनेक होने की इच्छा की थी और यह चराचर जगत मेरी ही इच्छाओं का परिणाम है। इच्छा रूप में दृश्य भी मैं हूँ और उस दृश्य को भोगने वाला द्रष्टा भी मैं ही हूँ, मुझे कोई बाँध नहीं सकता मैंने ही अपनी इच्छाओं के द्वारा स्वयम को बाँध रखा है।
यह आत्मा जो अज्ञान में उलझकर विभिन्न रूप धारण कर लेती है, मेरी ही बिखरी हुई चेतना है- मैं ही सभी आत्माओं का स्वामी परमात्मा और मन-बुद्धि से परे वास करने वाला चराचर जगत का स्वामी हूँ ।
-राजयोगी जी